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शब्दार्थ
4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
पिक विज्ञात धर्म गो० गौतम म• मैंने पु. पुरुष स. सर्व आराधक प० प्ररूपा त. तहां जे. जो च.. चौथा पु० पुरुष जात से वह पु० पुरुष अ० अशीलवन्त अ. अश्रुतवन्त अ० अनुपरत अ० अविज्ञात धर्म गो० गौतम म० मैंने पु. पुरुष स० सर्व विराधक प० प्ररूपा ॥१॥ क. कितनेक प्रकार की भं. भगवन् आ० आराधना ५० प्ररूपी गो० गौतम ति० तीन प्रकार की आ० आराधना ५० प्ररूपी तं. वह
सीलवं सुतव उवरए विण्णायधम्मे एसणं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते ४ तत्थणं जे से चउत्थे पुरिसजाए सेणं पुरिसे असीलवं असुतवं अणुवरए अविण्णाय धम्मे एसणं गोयमा! मए पुरिसे सव्वीवराहए पण्णत्ते॥१॥कइविहाणं भंते!
आराहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा आराहणा षण्णत्ता, तंजहा नाणाराहणा, ज्ञानवत है वह पाप से निवर्ता नहीं परंतु धर्म का स्वरूप उनोंने जाना है इस से वह ज्ञानादि त्रय रूप में चारित्र रूप देश विराधक हुवा. जो तीसरा भांगावाला क्रियावंत व ज्ञानवंत है वह पाप से निवर्ता है,
और उसने श्रुत धर्म भी जाना है. अहो गौतम ! वह पुरुष माराधक होता है और जो चौथा भांगावाला क्रिया व ज्ञान रहित है वह पुरुष पाप से निवर्ता नहीं है और उनोंने धर्म का स्वरूप जाना नहीं है. अहो गौतम ! ऐसा पुरुष सर्व विराधक होता है ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की होती है ? अहो गोतम ! आराधना तीन प्रकार की कही. १ मतिज्ञानादि पांचों ज्ञान को
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ