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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र Agr>
पु० पुरुष जात सी० शीलबन्त अ० श्रुतयन्त नहीं उ० उपरत अ० अविज्ञात धर्म गो० गौतम म० मैंने पु. परुष दे. देशाराधक प० प्ररुपात. तहां जे. जो दो० दूसरा पु० पुरुष जात से वह पु० पुरुष अ० अशीलवन्त सु० श्रुतवन्त अ० अनुपरत वि विज्ञात धर्म गो गौतम म. मैंने पु० पुरुष दे० देशविराधक प. प्ररूपात. तहां जे. जो त. तीसरा पु० पुरुष जात मे. वह सी० शीलवन्त सु. श्रुतवन्त उ० उपरत ___ अविण्णायधम्मे एसणं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते ॥-२ तत्थणं जे से
दोच्चे पुरिसजाए सेणं पुरिसे असीलवं सुतवं अणुवरए विण्णाय धम्मे एसणं गोयमा ! । ___मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते ॥ ३ तत्थणं जे से तच्चे पुरिसजाए सेणं पुरिसे नहीं चलता है और जैसे अंध और पंगु पुरुष अलग २ रहने से इच्छित स्थान पर नहीं पहुंच सकते हैं ऐसे ही मात्र ज्ञान से अथवा मात्र क्रिया से मोक्षार्थ सिद्ध नहीं हो सकता है, परंतु ज्ञान और क्रिया दोनों से मोक्षार्थ सिद्ध होता है. इस विषय में चार प्रकार के पुरुष कहते हैं. १ कोई पुरुष शील संपन्न है परंतु ज्ञान संपन्न नहीं है २ कोई शील संपन्न नहीं है परंतु ज्ञान संपन्न है ३ कोई शील संपन्न भी है और ज्ञान संपन्न भी है और ४ कोई शील संपन्न भी नहीं है व ज्ञान संपन्न भी नहीं है. उन में से प्रथम भांगावालाई पुरुष अपनी बुद्धि से पाप से निवर्ता परंतु ज्ञान के अभाव से धर्म जान सका नहीं इस से वह पुरुष क्रिया में तत्पर होने से देश आराधक कहा जाता है.. उस में जो दूसरा पुरुष शीलवंत नहीं
आठवा शतक का दशवा उद्दशा "
भावार्थ
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