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भावार्थ
49 अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
देसबंधगा संखजगुणा,वेउब्विय सरीरस्स सव्वबंधगाअसंखेज्जगुणा,तस्सचेव देस बंधगा असंखजगुणा, तेया कम्मगाणं दोण्हवि तुल्ला अबंधगा अणतगुणा, ओरालिय सरीरस्स सबबंधगा अणंतगुणा, तस्सचेव अबंधगा विसेसाहिया, तस्सचेव देसबंधगा असंखजगुणा, तेयाकम्मगाणं देसबंधगा विसेसाहिया, वेउब्धिय सरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया, आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ अट्टम सयरस नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ८ ॥ ९॥
रायगिहे जाव एवं वयासी अण्णउत्थियाणं भंते ! एव माइक्खंति जाव परूवेति स्पर तूल्य अनंत गुने सिद्ध आश्री, इस से उदारिक शरीर के सर्व बंधक अनंत गुने वनस्पति आश्री, इस से उदारिक शरीरी के अबंधक विशेषाधिक, इस से उदारिक शरीरी के देश बंधक असंख्यात गुने, इस से तेजस कार्माण के देश बंधक विशेषाधिक, इस से वैक्रेय शरीरी के अबंधक विशेषाधिक, इस से आहारक शरीरी के अबंधक विशेषाधिक ॥५१॥ अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह आठवा शतक का नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ८ ॥ ९ ॥
नववे उद्देशे में बंध का अधिकार कहा यह श्रुत व शील से होता है' इस से आगे श्रुत व शील का कथन करते हैं. राजगृह नगरी में गुण शील नामक उद्यान में भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे यावत्
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी भालाप्रसादनी *