________________
भावाथे
** अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समं भाणयं तहेव भाणियव्वं ॥ जस्सणं भंते ! आहारग सरीरस्स देसबंधे सेणं भंते ! ओरालिय सरीरस्त एवं जहा आहारग सररिस्त सव्व बंधेणं भाणियं जाव कम्मगस्स ॥४८॥ जस्सण भंते ! तयासरीरस्स देसबंधे सेण मते ओरालिय सरीरस्स किं बंधए अबंधए ? गोयमा! बधएवा अबंधएवा,। जइ बंधए किं देस बंधए सव्व बंधए? गोयमा! देस बंधएवा सव्व बंधएवा, उब्बिय सरीरस्स किंबंधए एवं चेव,
एवं आहारगस्सवि कम्मग सरीरस्स किं बंधए अबधए? गोयमा !बंधएणोअबंधए।जइबंधए होता है परंतु अबंधक होता है. ऐसे ही वैक्रेय शरीर का जानना. तेजस कार्माण का उदारिक जैसे जानना. जैसे सर्वबंध का कहा वैसे ही देशबंध का जानना. ॥ ४८ ॥ अहो भगवन् ! जिस को तेजस शरीर का देशबंध होता है वह क्या उदारिक शरीर का बंधक होता है या अबंधक होता है? अहो गौतम बंधक व अबंधक दोनों होता है. अब बंधक होता है तो क्या देशबंधक होता है या सर्वबंधक होता है। अहो गौतम ! देशबंधक भी होता है और सर्वधक भी होता है. बैक्रेय शरीर का उदारिक जैसे जानना. आहारक शरीर का भी वैसे ही जानना. कार्माण शरीर का क्या बंधक होता है, या अबंधक होता है ? अहो गौतम ! बंधक होता है परंतु अबंधक नहीं होता है. यदि बंधक होता है तो क्या देशबंधक होता है या सर्व बंधक होता है ? अहो गौतम ! देश बंधक होता है परंतु सर्व बंधक नहीं होता है ।।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी जालाप्रसादजी *