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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
बंधेणं भाणथं तहेव देसबंधेणवि भाणियब्वं जाव कम्मगस्स ॥ ४६॥ जस्सणं भंते ! वेउबियसरीरस्स सम्बंबंध सेणं भंते!ओरालियसरीरस्स किं बंधए अबंधए? गोयमा!णोबंधए अधए आहारग सरीरस्स एवं चेव तेयगस्स कम्मगस्सय जहेव ओरालिएणं समं भणियं तहेव भाणियव्वं, जाव दसबंधे नो सव्वबंधे। जस्सणं भंते ! वेउब्धिय सरीरस्स देसबधे सणं भंते!ओराालय सरीरस्स किं बंधए अबंधए ?गोयमा ! णो बधए अबंधए,एवं जहेव सव्व बंधेणं भणिय तहेव देसबंधेणवि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स ॥ ४७ ॥ जस्सणं भंते ! आहारगसरीरस्स सव्वबंधे सणं भंते ! ओरालिय सरीरस्स किं बंधए
अबंधए ?गोयमा! णो बंधए अबंधए, एव वेउब्वियस्सवि,तेयग कम्माणं जहेव ओरालिएणं उदारिक शरीर का देश बंध होता है उस का क्या वैक्रेय शरीर का बंध होता है ? अहो गौतम ! वह बंध वगैरह सत्र सर्वबंधक जैसे कहना. ॥ ४६॥ अहो भगवन् ! जो वैक्रेय शरीर का सर्वबंधक होता है वह क्या उदारिक शरीर का बंधक होता है या अबंधक होता है ? अहो गौतम ! उदारिक शरीर का बंध क नही होता है ऐसे ही आहारक शरीर का जानना. तेजम कार्माण का उदारिक जैसे जानना. अहो भगवन् ! वैक्रेय शरीर का देशबंधक जो होता है वह उदारिक का क्या बंधक होता है ? अहो गोतम ! जैसे सर्वबंधक का कहा वैसेही देशबंधक का जानना.॥४७॥ अहो भगवन् ! नित को आहारक शरीर का संबंध होता है उसको क्या उदारिक शरीर का धंध होता है ? अहो गौतम ! वह उदारिक शरीर का बंधक नहीं है।
% आठवा शतकका नववा उद्देशा
भावार्थ
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