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सत्र
भावार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋाजी
सेणं भंते!वेउब्विय सरीरस्सा बंधए? अबंधए गोयया!णो बंधए अबंधए । आहारगसरीर स्स किं बंधए अबंधए ? गोयमा ! णो बंधए अबंधए । तेया सरीरस्स किं बंधए अबंधए ? गोयमा ! बंधए णो अबंधए ॥ जइ बंधए किं देसबंधए सव्वबंधए ? गोयमा ! देसबंधए जोसव्वबंधए ॥ कम्मासरीरस्स किं बंधए अबंधए जहेव तेयगस्स जाव देसबंधए, णो सबबंधए॥ जस्सणं भंते ! ओरालियसरीरस्स देसबंधेसेणं भंते ! वेउव्विय सरीरस्स किं बंधए अबंधए ? गोयमा ! णो बंधए अबंधए, एवं जहेव सव्वजैसे तेजस का कहा वैसे ही यहां आयुष्य वर्जकर अंतराय तक जानना. आयुष्य में सब से थोडे आयुष्य , कर्म के देश बंधक इस से अबंधक संख्यात गुने ॥ ४५ ॥ अहो भगवन् ! जो उदारिक शरी सर्व बंध होता है वह क्या वैक्रेय शरीर का बंधक होता है ? अहो गौतम ! नहीं होता है ! क्योंकि एक समय में सर्व बंधक उदारिक में वैकेय नहीं होवे. अझे भगवन् ! क्या आहाररीक शरीर का बंधक होता है ? अहो गौतम ! नहीं होता है. तब क्या तेजस शरीर का बंधक होता है ? हां गौतम : 3
होता है परंतु अबंधक नहीं होता है. जब तेजस शरीर का बंधक होता है तो क्या देश बंधक होता है या सर्व बंधक होता है ? अहो गौतम ! देश बंधक होता है परंतु सर्व बंधक नहीं होता है. क्योंकि इस में सर्व बंधक का अभाव है. कार्मण शरीर का तेजस शरीर जैसे कहना. अहो भगवन् ! जिसका
प्रवाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*