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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अपिजी
परिणमे में दो दोभालापक त० ते ग. प्रकाशने में दो दो आ. बालाप भाः कहना ॥ ८ ॥ जी. जीर भं. भाप कं. कांक्षा मागीय कारबाही गो गौतन पं. बांधक कैसे भं भगवन है जी जीवकांक्षा मोहनीय कर्म बांधे गोल गोलप प. मनाद प्रत्यय जो जोगनिमित्त से वह परिणमइ दो आलावगा,तहागमणिजेगात्र दो आलावगा भाणियव्या,जाव तहामे अत्थितं अत्थिन्ते गणिजं जहा ते भंत! एत्थंगमणिजं तहाते इह गमणिजं जहाते इह गमणिज
तहाते इत्थं गमणिजीता गोयमा!जहामे इत्यं गमणिज्जतहामे इगमणिज्ज॥८॥जीणं है भंते कंखा मोहाणिज कम्म बंधति ? हंता गोयमा ! बंधति । कहणं भंते ! जीवा कंखा अर्थात छती वस्तु छतेपने ही प्रकाशने योग्य है अन्य को जलाने योग्य है ? यहां पर भ परिणमते के दो आलापक को वैसे ही प्रकाशने के हमारे मतमें अस्तित्व अस्तिपने प्रकाशने योग्य है वहां तक दो आलापक कहना. और भी ओ भनाज: जैसे आप के मत में मेरे जैसे मुशिष्य को वस्तु प्ररूपी वैही कसा आपके मन में पावडी मृदयाक्षिक को प्ररूपी और जैस पाखंडी गृहस्थादिक को वस्तु प्रसपी वैभही क्या से जैन मशिष्यको वस्तु धरूपी गौतम जने मेरे मन में सुशिष्यादिक को वस्तु वरण प्ररूपानेही पावंती गृहस्थादिक को वस्तु स्वरूप प्ररूपा और मे पाखंडी को वस्तु स्वरूप प्रख्या वतीमाशेच्य को वस्तु स्वरूप प्रमा॥ ८ ॥ अहो भगवन : जीव कांक्षा
प्रकाशक-राजावहादूर लाला मुखदवसहायजी ज्यालाममादजी*
भावार्थ
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