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शब्दाथ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -:
गौतम जा. जाति मद से क० कलमद से ब० बलमद से जा. यावत् इ० ऐश्वर्यमद से णी० नीच गोत्र कर्म शरीर जा० यावत् प० प्रयोग बंध ॥ ४३ ॥ अं० अंतराय कर्म शरीर पु० पृच्छा गो• गौतम दा० दानांतराय से ला०लाभांतराय से भो०भोगांतराय से उ. उपभोगांतराय से वी० वीतराय से अं०अंतराय कर्म शरीर प० प्रयोग नाम क० कर्म के उ. उदय मे अं० अंतराय कर्म स० शरीर प्रयोग बंध ॥ ४४ ॥ सरल शब्दार्थ ॥
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-.)बंधे ॥४३॥ अंतराइय कम्मा सरीर पुच्छा ? गोयमा ! दाणंतराएणं, लाभंतराएणं, है भोगतराएणं उवभागंतराएणं,वीरियंतराएण अंतराइय कम्मा सरीर प्पओगणामाए कम्मस्स
उदएणं, अंतराइय कम्मा सरीर प्पओगबंधे॥४४॥णाणावरणिज्ज कम्मासरीरप्पओगबंधणं
भंते ! किं देसबंधे सव्व बंधे ? गोयमा देसबंधे नो सव्वबंधे ॥ एवं जाव अंतराइय।। होता है. और जाति यावत् ऐश्वर्यका पद करने से नीच गोत्र कार्यण शरीर प्रयोग बंध होता है ॥ ४३ ॥ अंतराय कर्म की पृच्छा. अहो गौतम : दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय और वीतिराय से अंतगय कार्मण शरीर प्रयोग नामक कर्म के उदय से अंतराय कार्मण शरीर प्रयोग बंध होता है ॥ ४४ ॥ अहो भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग देश बंध है . या सर्व बंध है ? अहो गौतम ! देश बंध है परंतु सर्व बंध नहीं है ऐसे ही अंतराय तक सब कर्मों का जानना. अहो भगवन !
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावार्थ