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शब्दार्थ
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*18- पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती । मूत्र
मु० शुभनाम कर्म शरीर जा० यावन् ५० प्रयोग बंध अ०अशुभनाम कर्म स० शरीर का काया का वक्र जा. यावत् वि० विषवाद जोग सहित अ० अशुभ नाम कर्म शरीर जा० यावत् १० प्रयोग बंध ॥ ४२ ॥4 उ. उच्चगोत्रक कर्म शरीर पु० पृच्छा गो० गौतम जा० जातिमद रहित कु० कुलमद रहित बबलमद रहित रू० रूपमद रहित त. तप मद रहित ला. लाभ मद रहित सु० श्रुत मद रहित इ० ऐश्वर्य मद रहित उ० उच्चगोत्र कर्म शरीर जा. यावत् प० प्रयोग बंध णी. नीचगोत्र कर्म शरीर पु० पृच्छा गो० 1
असुभनामकम्मा सरीरपुच्छा ? गोयमा ! कायअणजुययाए, जाव विसंवादणा जोगेणं असुभणाम कम्मा सरीर जाव प्पओग बंधे ॥ ४२ ॥ उच्चागोय कम्मा सरीर पुच्छा ? गोयमा ! जाति अमदेणं, कुल अमदेणं, बल अमदेणं, रूव अमदेणं, तब अमदेणं, लाभ अमदेणं, सुअअमदेणं इस्सरिय अमदेणं उच्चागोय कम्मा सरीर जाव प्पओग बंधे ॥ णीयागोय कम्मा सरीर पुच्छा ? गोयमा ! जातिमदेणं,
कुल मदेणं, बलमदेणं जाव इस्सरियमदेणं णीयागोय कम्मा सरीर जाव प्पओग। वक्रता से, मन की वक्रता से, भाषा की वक्रता से व जैसा कहे वैसा नहीं पालने से यावत् अशुभ नाम । ७ कार्मण शरीर प्रयोग बंध होता है ॥ ४२ ॥ उच्च गोत्र की पृच्छा. जाति का मद नहीं करने से, कुल,
बल , रूप, तप, लाभ, श्रुत और ऐश्वर्यका मद नहीं करने से यावत् उच्च गोत्र कार्मण शरीर प्रयोग बंध है।
29408:0% आठवा शतक का नववा उद्देशा
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भावार्थ