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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
8 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
परिग्रह से पं० पंचेन्द्रिय वध से कुछ मांसाहार से णे० नरकायुष्य क० कर्म शरीर प०प्रयोग नाम क कर्म के उ० उदय से ने० नरकायुष्य क० कर्म शरीर जा० यावत् प० प्रयोगबंध ति० तिर्यच आ आयुष्य क० कर्म शरीर पु० पृच्छा गो० गौतम मा० मायाले निः निविडमाया अ० असत्य वचन कु० कुडतोल कु० कुडमाप से ति० तिर्यंच योनि आयुष्य कर्म जा० यावत् प० प्रयोग बंध म० मनुष्य आयुष्य } कर्म शरीर पु० पृच्छा गो० गौतम प० प्रकृति भद्रिक प० प्रकृति विनीत सा० अनुकंपा अ० मात्सर्यता परिग्गाहियाए, पंचिदियवहेणं, कुणिमाहारेणं, णेरइयाउयकम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं णेरइयाउय कम्मासरीरजावप्पओगबंधे ॥ तिरिक्खजोणियाउय कम्मासरीरपुच्छा ? गोयमा ! माइलयाए, नियडिलयाए अलियवयणेणं कूडतुलकूडमा णेणं तिरिक्खजोणियाउय कम्माजावप्पओगबंधे || मणुस्सा उयकम्मा सरीरपुच्छा ? ( वध से और मांसादिक के भोजन करने से नारकी के आयुष्य कार्माण शरीर प्रयोग बंध होता है. तियंच योनि के आयुष्य कार्माण शरीर प्रयोगबंध की पृच्छा. अहो गौतम! अन्य को ठगने की बुद्धि से माया करने से निविड माया करने से, असत्य वचन बोलने से और खोटे तोले खोटे माप करने से तिर्यंच योनिक आयुष्य नाम कर्म के उदय से तिर्यच योनिक आयुष्य कार्माण शरीर (पृच्छा. अहो गौतम ! भद्रिक प्रकृति से, विनित प्रकृति से
प्रयोग बंध होता है. मनुष्य के आयुष्य की अनुत्कर्षपना से और मात्तर्यता रहितपना से
* आठवा शतकका नववा उद्देशा 4090
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