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शब्दार्थक किस क० कर्म के उ०. उदय से गो० गौतम पा० प्राण की अनुकंपासे भू. भूत की अनुकंपासे ए.14
ऐसे न जैसे स० सातवा शतक में दु० दुःसम उ० उद्देशे में जा० यावत् अ०दुःख नहीं देने से सा०साता Y ० वेदनीय क० कर्म शरीर प प्रयोग ना नामक कर्म के उ०उदय से सा०सातावेदनीय जाव्यावत् .
१२०१ Esबंध अ. असाता वेदनीय पु०पृच्छा गो• गौतम अन्यकोदुःखदेने से प० दूसरे को शोक उपजाने से ज०6
जैसे स० सातवा शतक में दु० दुःसम उ० उद्देशा में जा. यावत् ५० परितापना उपजाने से अ० असाता है ॥ ३८ ॥ सायावेयणिज्जकम्मा सरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ?
गोयमा ! पाणाणुकंपयाए. भूयाणुकंपयाएछ, एवं जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसएजाव अपरियावणयाए । सायावेयणिज्जकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मरस उदएणं साया
वेयणिज जात्र बंधे ॥ असायावेयणिज्ज पुच्छा ? गोयमा ! पर दुक्खणयाए, पर भावार्थ और दर्शन का व्यभिचार बताने से. इन छ कारन से दर्शनावरणीय कार्माण शरीर प्रयोग नाम कर्म के उदय ।।
से दर्शनावरणीय कार्माण शरीर प्रयोग बंध होता है ॥ ३८॥ अहो भगवन् ! साता वेदनीय कार्माण ।
शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? अहो गौतम ! प्राणों की अनुकंपा करने से, भूतों की * अनुकंपा करने से यावत् परितापना नहीं उपजाने से साता वेदनीय कार्माण शरीर नाम कर्म का उदय से 18 साता वेदनीय कार्माण शरीर प्रयोग बंध होता है. और अन्य को दुःख देने से, शोक उपजाने से यावतपरि-
488- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
43 आठवा शतकका नववा उद्देशा
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