________________
शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
{ नाम क० कर्म के उ० उदय से ना० ज्ञानावरणीय क० कर्म शरीर प्रयोग बंध ॥ ३७ ॥ द०दर्शनावरणीय क० कर्म शरीर प्रयोग बंध मं० भगवन् क० किस क० कर्म से उ० उदय से गो० गौतम दं० दर्शन प्रत्यनीक ए० ऐसे ज जैसे ना० ज्ञानावरणीय न० विशेष दं० दर्शन ना० नाम घे० रखना जा० यावत् । दं० दर्शन वि० विसंवादन जो ० योग से दं० दर्शनावरणीय क० कर्म शरीर प्रयोग नाम क० कर्म के उ० उदय से जा० यावत् १० प्रयोग बंध ॥ ३८ ॥ सा० शाता वेदनीय कव्कर्म शरीर प्रयोग बंध मं भगवन् कम्मस्स उदएणं नाणावरणिजकम्मा सरीरप्पओगबंधे ॥ ३७ ॥ दरिसणा वरणिजकम्मा सरीरप्पओगबंधेणं भते ? कस्स कम्मस्स उदरणं ? गोयमा ! दंसण पडिणीययाए एवं जहा नाणावरणिज्जं नवरं दंसण नाम घेयव्वं, जाव दंसण विसंवायणा जोगेणं दंसणावरणिज्जकम्मा सरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं जात्र प्पओगबंधे सो ज्ञानांतराय से ज्ञान अथवा ज्ञानी का प्रद्वेष करे, ज्ञान अथा ज्ञानी की हीलना करे और ज्ञान (का व्यभिचार बतलावे इन छ कारन से ज्ञानावरणीय कार्याण शरीर नाम कर्म के उदय से ज्ञानावरणीय कार्याण { शरीर प्रयोग बंध होता है || ३७ ॥ अहो भगवन् ! दर्शनावरणीय कार्माण शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? अहो गौतम दर्शन ( चक्षुदर्शनादि ) अथवा दर्शनी की प्रतिकूलता से, दर्शन अथवा दर्शनीकी निन्दा करने से, दर्शन में अंतराय देनेसे, दर्शन का मद्वेष करने से, दर्शन की असातना करने से,
प्रकाशक - राजाबहादर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
१२००