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शब्दार्थक ५० प्ररूपा गो० गौतम अ० आठ प्रकार का ना० ज्ञानावरणीय जा. यावत् अं. अंतराय कर्म शरीर
प्रयोग बंध ना० ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंध भं० भगवन् क. किसक कर्म के उ. • उदय से गो० गौतम ना० ज्ञान प्रत्यनीक से ना ज्ञान निन्हवता से ना ज्ञान अंतराय से ना० ज्ञान की · अ.. अति असातना से ना. ज्ञान के वि० विसंवादन योग से ना० ज्ञानावरणीय क० कर्म शरीर ५० प्रयोग
अणंतगुणा ॥ ३६ ॥ कम्मासरीरप्पओग बंधेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! । कट्टविहे पण्णत्ते तंजहा नाणावरणिज कम्मासरीरप्पओगबंधे जाव अंतराइयकम्मा । सरीरप्पओगबंधे ॥ नाणावरणिज्जकम्मा सरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उद- १ एणं ? गोयमा ! नाणपडिणीययाए, नाण निण्हवणयाए, नाणंतराएणं, नाणप्पदोसेणं,
णाणच्चासायएणं, नाण विसंवादणाजोगेणं, नाणावरणिज कम्मासरीरप्पओगनामाए भावार्थ बहुत यावत् विशेषाधिक है ? अहो गौतम ! सर्व से थोडे अबंधक इस से देशबंधक अनंत गुने. ॥ ३६॥
अहो भगवन् ! कार्माण शरीर प्रयोग बंधके कितने भेद कहे हैं ?अहो गौतम! आठ भेद कहे हैं. ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कार्याण शरीर प्रयोग बंध अहो भगवन् ! ज्ञानावरणीय कार्माण शरीर प्रयोग किम कर्म के उदय से होवे ? अहो गौनम ! श्रुतादि ज्ञान अथवा अभेद से ज्ञानवंत की प्रतिकूलता सो ज्ञान प्रत्यनीकता, से, ज्ञान अथवा ज्ञान दाता गुरु की निंदा सो ज्ञान निन्हवता, से ज्ञान ग्रहण करनेवाले को विघ्न करना
पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र 4280
egga आठवा शतक का नववा उद्देशा