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पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
१. ? गोयमा ! पंचविहे प० तंजहा एगिदिय तेयासरीरप्पओगवंधेय, बेइंदिय तेयासरीरप्पओगबंधेय, जाव पंचिंदिय तेयासरीरप्पओगबंधेय॥ एगिंदिय तेयासरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कइविहे ५० ? एवं एएणं अभिलावणं भेदो जहा ओगाहण संठाण जाव पज्जत्ता सव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइय कप्पातीय वेमाणिय देवपंचिंदिय तेया सरीरप्पओगबंधेय अपज्जत्ता सव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइय जाव बंधेय ॥ ३२ ॥ तेया सरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कस्स कम्मरस उदएणं ? गोयमा ! वीरिय
सजोग सद्दव्ययाए जाव आउयंवा पडुच्च तेया सरीर प्पओगणामाए इस से देशबंधक संख्यातगुने और इस से अबंधक अनंत गुने ॥ ३१॥ अहो भगवन् ! तेजस शरीर प्रयोग बंध के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! तेजस शरीर प्रयोग बंध के पांच भेद कहे हैं. एकेन्द्रिय तेजस शरीर प्रयोग बंध यावत् पंचेन्द्रिय तेजस शरीर प्रयोग बंध. अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय तेजस शरीर प्रयोग बंध के कितने भेद कहें हैं ? अहो भगवन् ! पुथ्वी कायादि पांच भेद. और इसी अभिलाप से अवगाहन, संस्थान यावत् पर्याप्त सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय तेजस: प्रयोग बंध व अपर्याप्त अनुत्तरोपपातिक यावत् प्रयोग बंध ॥ ३२॥ अहो भगवन् ! तेजस शरीर प्रयोग बंध
. आठवा शतक का नववा उद्देशा
843 पंचमांग