SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी मुहुत्तं ॥ २९ ॥ आहारग सरीर प्पओग बंधंतरेणं 'भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयना ! सव्व बंधंतरं जहण्णेणं अतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतंकालं अणंताओ ओसप्पिणी उस्सपिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा अवटुं पोग्गलपरियढें देसूणं, एवं देसबंधंतरंपि ॥ ३० ॥ एएलिणं भंते ! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसबंधगाणं सव्वबंधगाणं अबंधगाणय कयरे २ हिंतो जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीररस सव्वबंधगा. देसबंधगा संखेजगुणा, अबंधगा अणंतगुणा ॥ ३१ ॥ तेयासरीरप्पओग बंधेणं भंते । कइविहे और सर्वबंध दोनों है. अहो भगवन् ! आहारक शरीर प्रयोग बंध की कितने काल की स्थिति कही ? अहो गौतम : सर्वबंध की एक समय देशबंध की जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहून ॥ २९ ॥ अहो भगवन् । उसका अंतर कितने काल का कहा ? अहो गौतम ! सर्वबंध का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट अनंत काल Eअनंत अवसर्पिणी उत्सर्पिणी, क्षेत्र से अनंत लोक अर्थ पुदल पाव जानना. ऐसे ही दशवध : जानना. ॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! इन आहारक शरीर के देशबंधक, सर्वबंधक व अंबंधक में कौन किससे अल्प, बहुत यावत् विशेषाधिक है ? अहो गौतम : सत्र से थोडे आहारक शरीर के सर्वबंधक जीव *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy