________________
-
शब्दार्थ
भावार्थ
29 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
म मनमें अ० धारता ५० करता चि० रहता सं ० संवरता आ' आज्ञा आ०आराधक भ० होवे हं०हां गो. गौतम ए ऐसा म.मनमें अ० धारता जा यावत् भ०हो. ॥६॥ से वह भंभगान अ० अस्तिरूप पने प.
॥ ५॥ सेणणं भंते ! एवं मणे धारेमाणे एवं पकरेमाणे, एवं चिट्रेमाणे, एवं तंवरेमाणे, आणाए आराहए भवड? हंता गोयमा! एवं मणे धारमाणे जाव भवड ॥ ६ ॥ सेणणं भंते ! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, णत्थित्तं णत्थित्ते परिणमइ ? हंता गोयमा ! जाव परिणमइ ॥ जतंभंते ! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं क्या आज्ञा का आराधक होता है ? हां गौतम ! ऐमा करने वाला आज्ञा का आराधक होवे ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! अस्तित्व अस्तिरूपंपने ( वस्तु का पर्यायान्तर होने पर जो मूल गुंण है वह होना ) परिणमे? जैसे अंगुली ऋजुता, वक्रता, धारन करे तो भी अंगुलीपने परिणमे और नास्तित्व सो नास्तिरूपपने परिणमे ? हां गौतम ! जो अस्ति रूप 'वस्तु है वह अस्तिपने परिणमती है, जैसे अंगुली को अंगुली ही कही जाति है और अछनी वस्तु नास्तित्व पने परिणमति है जैसे जो पट नहीं है वह कदापि पट नहीं है. अहो भगवन् ! क्या वह प्रयोग भो जीव का व्यापारसे या स्वभाव से परिणमे ? हां गौतम ! प्रयोग से भी परिणमें जैसे कुंभकार मृत्तिका का घर बनावे और स्वभाव से भी परिणमें जैसे आकाश में बदल होवे. अहो भगवन् ! जैसे आपके मत में प्रयोग या स्वाभाव से अस्तिपना अस्तिपने परिणमताहै
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
I