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________________ - शब्दार्थ * हनीय कर्म त्रे. वेदते हैं हं० हां वे वेदते हैं क. कैसे भं० भगवन् जी. जीव कं. कांक्षा मोहनीय कर्म of वे. वेदते हैं गो० गौतम ते.. उस २ का कारणले सं. शंकित कं. कांक्षा सहित वि० फल में संदेह सहित भे० भेदका प्रात का संक्लिष्ट परिणामी जी जीव के० कांक्षा मोहनीय कर्म वे. वेदे ॥ ४ ॥ तं. वहही स० सत्य णी. शंकारहित जं. जो जिजिनने प० प्ररूपा हं हां गो० गौतम त. वहही स० सत्य णी शंकारहित जं. जो जि० जिनने पप्ररूपा ॥५॥ से वह णू निश्चय भं भगवन् ए ऐसा वेति । कहणं भंते ! जीवा कंखा मोहणिजं कम्मं वेदेति ? गोयमा ! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया, कंखिया, वितिगिच्छिया, भेदसमावण्णगा, कलुससमावण्णगा, एवं खल जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदति ॥ ४ ॥ सेणणं भंते ! तमेवसच्चं, णीसंक, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं णीसंकंजं जिणेहिं प्रवेइयं भावार्थ पदार्थ में देश से या सर्व से शंका उत्पन होवे, अन्य दर्शन ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न होवे, कृत कार्य के फल में संदेह उत्पन्न होने, देवीभाव उत्पन्न होवे, अथवा मतिभ्रम होवे, इस तरह से जीव कांक्षा ge हनीय कर्म वेदता है ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! जो जिन भगवानने कहा है वह क्या निःशंक सत्य है ??x of गौतम ! जो जिन भगवान् ने कहा है वह ही निःशंक सत्य है ॥ ५॥ अहो भगवन् ! इस तरह मन में धारता हुवा, ऐसे करता हुवा, ऐसे रहता हुवा ऐसे ही प्राणातिपातादिक से आत्मा को संवरता हुवा पंचमांग विवाह पण्णत्ति । भगवती) सूत्र पहिला शतक का तीसरा उद्देशा *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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