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________________ भंते ? किं देस बंधेसव्व बंधे ? गोयमा! देस बंधेविसव्व बंधेवि। वाउकाइयएगिदिय एवं चेव । रपणप्यभा पुढवि नेरइया एवं जाव अणुत्तरोववाइया ॥२०॥ वेउब्विय सरीर प्पओग बंधेणं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सव्व बंधे जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया, देसबंध जहण्णण एकं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरो वमाइ, समयूणाई ॥ वाउकाइय एगिंदिय वेडाव्वय पुच्छा ? गोयमा ! सन्वबंधे व वैमानिक का रत्नप्रभा जैसे जानना. ॥ १९ ॥ अहो भगवन् ! वैक्रय शरीर प्रयोग बंध क्या देशबंध या सर्व बंध. अहो गौतम ! देशबंध है और सर्व वंध भी है एकन्द्रिय वायु काय का ऐसे ही जानना. ऐसे ही रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी यावत् अनुत्तरोपपातिक वैमानिक देवका जानना॥२०॥अहो भगवन् ! वैक्रेय शरीर के बंध की कितनी स्थिति कही ?. अहो गौतम ! सर्व बंध जघन्य एक समय उत्कृष्ट दो समय (वै शरीर में उत्पन्न होता है अथवा लब्धि से करता है उस वक्त जघन्य एक समय पर्वबंध होता है उत्कृा दो समय सो उदारिक शरीर से वैक्रेय पना अंगीकार करता हुआ सर्व बंध होकर मृत्यु पाकर नारकी अथवा देवता में जब उत्पन्न होता है तब प्रथम समय में वैक्रेय का मर्व बंध कहना. इस तरह वैक्रेय शरीर का सर्व बंध उत्कृष्ट दो समयका जानना.) देशबंध जघन्य एक समय (उदारिक शरीर वैकेयपना अंगीकार 17 करता प्रथम समय में सर्व बंधक होकर दूसरे समय में मृत्यु पाता है इस आश्री) उत्कृष्ट एक समय कम २ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी है। प्रकाशक-राजाचहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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