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सूत्र
भावार्थ
*२००३ पंचमाङ्ग विवाह पण्णा ( भगवती ) सूत्र
बंधणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! वीरिय सजोग सद्दव्वयाए जात्र आउंवा पडुच्च रयणप्पभा पुढवि जाव बंधे, जाव अहे सत्तमाए ॥ तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय उचियं सरीर पुच्छा ? गोयमा ! वीरिय सजोग सद्दव्ययाए जब जहा वाकाइयाणं || मस्स पंचिंदिय वेडव्विय सरीर प्पओगं पुच्छा ? एवं चेत्र || असुर कुमार भणवासिदेव पंचिंदिय उब्विय जात्र बंधे ॥ जहा रयणप्पभा पुढवि णेरइया एवं जात्र थणियकुमारा, एवं वाणमंतरा, एवं जोइसिया, एवं सोहम्म कप्पोवगया वेमाणिया, एवं जाव अच्चुय गेवेज्जग कप्पातीय बेमाणिया शेयव्वा ॥ अणुत्तरो ववाइय कप्पातीय वैमाणिया एवं चेत्र ॥ १९ ॥ वेडाव्ीय सरीर प्पओग बंधेणं से वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध होता है. वीर्य सयोग सद् द्रव्य यावत् वायु काय एकेन्द्रिय शरीर प्रयोग बंध होता है. अहो भंगवन् शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? अहो गोतम
!
( रत्नप्रभा पृथ्वी का बंध होता है. ऐसे ही सातवी पृथ्वी तक जानना तिर्यव पंचेन्द्रिय का वायु काय जैसे [ कहना. मनुष्य, पंवेन्द्रिय का भी ऐसे ही जानता. असुर कुमारं यावत् स्वनित कुमार, वाण अंतर, ज्योतिषी
आयुष्य लब्धि प्रत्ययिक नाम कर्म के उदय से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी पंचेन्द्रिय वैक्रेय ! वीर्य सयोग यावत् आयुष्य प्रत्ययिक
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* आठवा शतकका नववा उद्देशा
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