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सूत्र
बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 0 अनुवादक
भेओ तहा भाणियव्यो जाव पजत्तासव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पातीय वेमाणियदेवपंचिंदियवेठब्धियसरीरप्पओगबंधेय, अपजत्ता सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोवयाइय जाव प्पओग बंधेय ॥ १८॥ वेठब्विय सरीरप्पओगबंधणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा! बीरिय सजोग सहव्वयाए जाव आउयंवा लाईवा पडुच्च वेउब्धिय सरीर प्पओग नामाए कम्मस्स उदएणं वेउब्विय सरीर प्पओग बंधे ॥ वाउकाइयएगिदिय वेउव्विय सरीर प्पआग बंधेणं पुच्छा ? गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए एवंचव जाव लडिं. पडुच्च, जाव वाउकाइयएगिदिय
सरीरप्पओगचंधे ॥ रयणप्पभापुढवि नेरइय पंचिंदिय वेडाव्वय सरीर प्पओग क्रेय शरीर प्रयोग बंध है ? अहो ,गौतम ! वायुकाय वैक्रेय शरीर प्रयोगबंध है परंतु अवायुकाय. नहीं है. इमी आलापक से जैसे अवगाहन, संस्थान चक्रेय शरीर का भेद कहा वैते ही पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंवेन्द्रिय वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध. अपर्याप्त सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिक यावत् प्रयोग वधतक जानना॥१८॥अहो भगवन् ! चक्रेय शरीर प्रयोगबंध कौनमा कर्म के उदय से होता है ? अहो गौतम ! वीर्य सयोग व सद्रव्य यावत आयष्य लब्धि आश्री वैक्रेय शरीर प्रयोग नगमक कर्म के उदय
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ