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सूत्र
भावार्थ
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती सूत्र
वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा ओरालिय सरीरस्स सव्वबंधगा, अबंधगा विसेसाहिया, देसबंधगा असंखेज्जगुणा ॥ १७ ॥ बेउल्विय सरीरप्पओगबंधणं भंते ! कइविहे प० ? गोयमा ! दुवि प० तं ० एगिंदिय वेउव्विय सरीरप्पओगबंधेय, पंचिदिय वेउव्विय सरीरप्पओगबंधेय, जइ एगिंदिय वेउन्त्रिय सरीरप्पओगबंधे किं वाउकाइयएगिंदियवेउच्चिय सरीरप्पओगबंधे, अवाउकाइयएगिंदिय वेउव्वियसरीरप्पओगबंधय । एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहण संठाणे वेडव्विय सरीर बंधका अंतर कहा यों वनस्पति का भी समयाधिक क्षुल्लक भव ग्रहण जानना. वनस्पतिकाय का उत्कृष्ट देश { बंधका अंतर पृथ्वीकाय जैसे जानना. अब इनकी अल्पात्रहुत्व कहते हैं. अहो भगवन् ! उदारिक शरीर के देश बंधक सर्व बंधक व अबंधक में कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं. ? अहो गौतम ! सब से थोडे जीव उदारिक शरीर के सर्व बंधक उत्पत्ति के प्रथम समय में पावे. उस से अबंधक विशेषाधिक गति में तथा सिद्धपने में पात्रे उस से देशबंधक असंख्यात गुने क्योंकि उस का काल असंख्यात गुना है ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध के कितने भेद कहे ? अहो गौतम ! वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध के दो भेद कहे हैं. एकेन्द्रिय वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध व पंचेन्द्रिय बैक्रेय शरीर प्रयोग बंध. यदि एकेन्द्रिय विक्रेद शरीर प्रयोग बंध है तो क्या वायुकाय एकेन्द्रिय वैक्रेय शरीर प्रयोग बंध है या अायुकाय
44+ आठवा शतक का नववा उद्देशा -400.
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