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काइयत्ते नो पुढवीकाइयत्ते पुणरवि पुढवीकाइयत्ते पुढवीकाइय एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओगबंधंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहण्णेणं दोखुड्डाग भवग्गहणाई, एवं चेव उक्कोसेणं अणतंकालं अणंताओ उसप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओणं अणंतालोगा असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा तेणं पोग्गलपरियट्टा
आवलियाए असंखेज्जइभागो देसबंधंतरं जहण्णेणं खंडागं भवग्गहणं समयाहियं, भावार्थ
-भगवन् ! पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध का काल से कितना अंतर होता है ?
अहो गौतम ! सर्व बंध का अंतर जघन्य तीन समय कम दो क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट अनंत काल यावत् आवलिका का असंख्यातवा भाग (अनंत काल के समय में अवसर्पिणी के समय से ग्रहण करते अनंत अवसर्पिणी उत्सर्पिणी होवे. ) क्षेत्र से अनंत लोक प्रमाण [ काल के समय में लोकाकाश के प्रदेश हरन करते अनंत लोक होवे उस में पुद्गलपरावर्तन होते हैं सो कहते हैं दश क्रोडाक्रोड पल्योपम का एक सागरोपम, दश क्रोडाक्रोड सागरोपम की एक अवसर्पिणी दश क्रोडाकोड सागरोपम की एक उत्सर्पिणी ऐसी अनंत अवसर्पिणी उत्तपिणी का एक पुद्गल परावर्तन होता है. यह असंख्यात समय
की आवलिका का असंख्यातवा भाग जानना. देश बंधका अंतर जघन्य समयाधिक एक क्षुल्लक भव ग्रहण 10[ पृथ्वी काय देश बंध से मृत्यु पाकर फोर अविग्रह गति से मृत्यु पाकर पृथीकाया में उत्पन्न होवे
११ पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) रत्र
आठवा शतकका नवधा उद्दशा
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