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________________ शब्दार्थ उत्कृष्ट अं अंतर्मुहूर्त पुःवृथ्वी कायएकेन्द्रिय पु०पृच्छा स०सर्व बंधका आंतरा ज जैसे ए एफेन्द्रिय त० तिरिक्खजोणियाणं, एवं मणुस्साणवि, निरवसेसं भाणियध्वं जाव उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ १५ ॥ जीवस्सणं भंते ? एगिदियत्ते नो एगिंदियत्ते पुणरवि एगिदियत्ते एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओगबंधतरं कालओ केवचिर होइ ? गोयमा ! सव्वबंधतरं जह 884098 है भावार्थ 48- पंचमांम विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र यथोक्त अंतर होता है. पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनि का सर्व बंध का अंतर जघन्य तीन समय कम क्षुल्लक भवन उत्कृष्ट समयाधिक पूर्व क्रोड. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अविग्रह गति में उत्पन्न हुवा तब प्रथम समय सर्व वक हुवा एक समय न्यून पूर्व क्रोड. जीव विग्रह गति तीन समय तक करके वहां उत्पन्न हुवा. वहां दो समय अनाहारक व तीसरे समय में सर्व बंधक होवे. अनाहारक के दो समय में से एक समय का पूर्व क्रोड में समावेश हुवा तब पूर्व क्रोड पूर्ण हुवा और जो एक समय शेष रहा सो अधिक जानना. जैसे एकेन्द्रिय का देश बंधंका अंतर कहा वैसे ही पंचेन्द्रिय का देश बंधका अंतर जानना. और जैसे तिर्यंच पंचे न्द्रिय का कहा वैसे ही मनुष्य का जानना॥१५॥ अहो भगवन् ! जीव एकेन्द्रियपना से बेइन्द्रियादिमें उत्पन्न । होकर पुनः एकेन्द्रिय होवे तब एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग परिणत के सर्व बंध व देश बंध का कितना अंतर कहा ? अहो गौतम ! सर्व बंध अंतर जघन्य तीन समय न्यून दो क्षुल्लक भव [ एकेन्द्रिय आठवा शतकका नववा उद्दशा gnd, wammmmmmumod
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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