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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अ० सर्व बंध का अंतरा ज० जघन्य खु क्षुद्रक भ० भव ग्रहण में ति० तीन समय कम उ० उत्कृष्ट ( वा० बावीस वर्ष स० सहस्र स० समयाधिक दे० देशबंध का आंतरा ज० जघन्य ए० एक समय उ० हियाई, देसबंधंतरं जहण्णेणं एक्वं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय ओरालिय पुच्छा ? गोयमा सव्व बंधंतरं जहणेणं खुड्डाग भवग्गणं तिसमयऊणं पुव्वकोडी समयाहिया, देसबंधंतरं जहा एगिंदियाणं तहा पंचिंदिय * प्रगाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी * [एक समय जघन्य अंतर हुवा ] उत्कृष्ट तीन समय ( पृथ्वीकाय के देश बंधक मरकर तीन समय विग्रह | गति से उत्पन्न होने वहां दो समय अनाहारक व तीसरे समय में सर्व बंधक होकर फीर देश बंधक होवे | इस से तीन समय का अंतर होता है) जैसे पृथ्वीकाया का अंतर कहा वैसे ही अप्काय, तेडकाय, वन(स्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरेन्द्रिय वगैरह सबका कहना. विशेषमें उत्कृष्ट जिनकी जितनी स्थिति होवे ) {उन को उतनी कहना अर्थात् अप्कायाकी सर्व बंधंका अंतर जघन्य तिनसमय कम क्षुल्लकभव उत्कृष्ट समयाधिक सात हजार वर्ष, देश बंधंतर जघन्य एक समय उत्कृष्ट तीन समय वगैरह सब का जानना. अब वायु काय का कहते हैं वायुकाय का सर्वबंध का अंतर जघन्य तीन समय कम क्षुल्लकभव उत्कृष्ट समयाधिक तीन { हजार वर्ष और देश बंध अंतर जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर मुहूर्त (वायुकाय उदारिक शरीर के देश बंध से मुहूर्त तक वैक्रेय अंतर कर फीर उदारिक सर्वबंध समयान्तर उदारिक देश बंध जब करे तब ११७८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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