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शब्दार्थ
श्री अमोलक ऋषिजी
है ० क्रेय शरीर ते० उस में ज० जघन्य ख० क्षुद्रक भ० भव ग्रहण ति० तीन समय कम उ० उत्कृष्ट * जा. जो ज. जिसकी उ० उत्कृष्ट ठि० स्थिति सा. वह म० समयऊणा का० करना जे० जिस में 903 है वे वैकेय शरीर ते० उस में दे० देश बंध ज० जघन्य ए० एक समय उ० उत्कृष्ट जा० जो ज. जिसकी ठि० स्थिति सा. वह स० समय ऊणा का कहना जा० यावत् म. मनुष्य दे० देश बंध जा ___ सव्वबंधो एक समय, देसबंधो जसि नत्धि वेउव्वियसरीरं, तेसिं जहण्णेणं खुड्डाग
भवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसणं जा जस्स उक्कोसिया ठिई, सा समयऊणा कायव्या जेसिं पुण अस्थि वेउब्वियसरीरं तेसिं देसबंधे जहण्णेणं एवं समयं, उक्कोसेणं जा
जस्स ठिई सा समयऊणा कायव्वा जाव मणुस्साणं, देसबंध जहण्णेणं एवं समयं भी समय और देश बंध अप्, तेउ, वनस्पति, वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में जघन्य तीन समय कम क्षुद्रक भव उत्कृष्ट अप् का एक समय कम सात हजार, तेउका एक समय कम तीन अहोरात्रि, वनस्पतिका एक समय कम दश हजार वर्ष, वेइन्द्रिय का वारह वर्ष, तेइन्द्रिय का ४९ अहोरात्रि और चतुरोन्द्रिय का एक समय कम छमास जानना. और वायुकाय में जघन्य एक समय उत्कृष्ट एक समय कम तीन हजार वर्ष. तिर्यंच पंचन्द्रिय में जघन्य एक समय उत्कृष्ट एक समय कम तीन पल्योपम का जानना. मनुष्य का जवन्य एक समय उत्कृष्ट एक समय कम तीन हजार वर्ष. जिन को वैक्रेय शरीर नहीं है उन को जघन्य तीन
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवस हायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ