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शब्दाथ
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सूत्र
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( भगवती ) मूत्र पंचमांग विवाह पण्णति
आ. आयुष्य प० प्रत्ययः ओ० उदारिक स शरीर प्रयोग ना० नाम के उ० उदय से ओ० उदारिक सः शरीर प्रयोग बंध ॥ १२ ॥ म० मनुष्य पं० पंचेन्द्रिय ओ० उदारिक शरीर प्रयोगबंध भं० भगवन् !
काइय एगिंदिय ओरालिय सरीरप्पओगबंधेवि एवं चेव एवं जाव वणस्सइकाइया, एवं बेइंदिया, एवं तेइंदिया, एवं चउरिंदिया, ॥ तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरप्पओग बंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? एवंचेव ॥ मणुस्स पंचिंदिय ओरालिय सरीर प्पओग बंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! वीरिय सजोग सद्दव्वयाए पमाद पच्चया जाव आउयं पडुच्च मणुस्स पंचंदिय ओरालिय सरीरप्पओग नामाए कम्मरस उदएणं ॥ १२ ॥ ओरालिय सरीरप्पओग नीव को तथाविध पुद्गल होवे सो सद्रव्य ) वीर्य, सयोग, सद्र्व्य, प्रमाद, कर्म, योग, भव व आयुष्य आश्री उदारिक शरीर प्रयोग नाम कर्म के उदय से उदारिक शरीर प्रयोग बंध होता है. अहो भगवन् !pp एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से है ? अहो गौतम ! जैसे पहिले कहा वैसे ही ॐ जानना यावत् पृथ्वीकायिक, अप् , तेऊ, वायु, व वनस्पतिकायिक उदारिक शरीर प्रयोग बंध ऐसे ही
द्वीन्द्रिय, तीइन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, व मनुष्य का जानना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! उदारिक है।
आठवा शतक का नववा उद्देशा 9887
भावार्थ