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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रयोग ॥ ११॥ ओ. उदारिक शरीर प्रयोगबंध भं० भगवन् क. किस क० कर्म के उ. उदय से गो. गौतम वी० वीर्य स० सजोग स० सद् द्रव्य से प० प्रमाद ५० प्रत्यय क. कर्म जो० जोग भ० भव में । संठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तागब्भवकातय मणुस्स
पंचिंदिय ओरालिय सरीरप्पओगबंधेय, अपजत्तागन्भवतियमणुस्स जाव बंधेय ॥ ११ ॥ ओरालिय सरीर प्पओग बंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा! वीरियसजोग सद्दव्वयाए पमाद पच्चया कम्मंच जोगंच भवंच आउयंच पडुच्च ओरालिय सरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं 'ओरालियसरीरप्पओगबंधे ॥ एगिदिय
ओरालिय सरीरप्पओग बंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? एवं चेव ॥ पुढवि वंध यावत् पंचेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध. अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध के कितने भेद ? अहो गौतम ! एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध के पांच भेद पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग बंध. इस तरह इसी आलापक से अवगाहना, संस्थान, यावत् पर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय, व अपर्याप्त गर्भज मनुष्य का बंध उद्देशे में कहा वैसे ही यहां जानना ॥ ११॥ अहो भगवन् ! उदारिक शरीर प्रयोग बंध किस का उदय से होता है ? अहो गौतम ! (मन प्रमुख सहित जो शक्तियाग प्रवर्ते सो सयोग,
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी*
भावार्थ