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शब्दाथ *बंध दु० दोमकार का पु० पूर्व प्रयोग प्रत्यय ५० प्रत्युत्पन्न प्रयोग प्रत्यय से• वह किं. कौनसा पु० पूर्व
प्रयोग प्रत्यय ज० जैसे ने नारकी सं० संसारीम. सर्व जीव त० लहां ने उसका कारस समद्धात करले जी० जीव प्रदेश बं बंध में स० उत्पन्न होय . वह किं. कानसा १. प्रत्युत्पन्न प्रयाग प्रत्यय .. सरीरबंधे ? सरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते तंजहा पुवप्पओगपच्चइए, पडुप्पण्णप्पओग
पञ्चइएथ ॥ से किं तं पुचप्पओगपच्चइए ? पुयाओगपच्चइए जणं नरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं, तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु समोहणमाणाणं जीवप्पएसाणं ।
बंधे समुप्पज्जइ सेत्तं पुचप्पओगपच्चइए ॥ से किं तं पडुप्पण्णप्पओग पञ्चइए?पडुप्पशरीर बंध के दो भेद कहे हैं ? पूर्व प्रयोग प्रत्यायिक सो गत काल में जीव के व्यापार से वेदना कपायादि सेवन करने का कारन, और २ पूर्व काल में अनुभवे नहीं होवे, वर्तमान में ही जिस का संबंध बना हुवा होवे वहां विघरे हुए प्रदेशों का संहरन करना जैसे केवल ज्ञानी समुद्धात से विखरे हुवे प्रदेशों को पांचवे समय में साहरन कर लेते हैं वह प्रत्युत्पन्न प्रयोग प्रत्ययिक शरीर बंध कहा जाता है. अब अहो। भगवन् ! इन दोनों में से पूर्व प्रयोग परिणत किस को कहते हैं ? अहो गौतम ! नरकादि सब संस जीव को समुद्घात करण क्षेत्र का बाहुल्य कहा, इस समुद्धात में तहां २ क्षेत्र में शरीर के बाहिर जीव के प्रदेश प्रक्षेप कर संकुचित करे, उपशर्जनी कृत तैजसादि शरीर प्रदेश से जीव प्रदेश की रचना विशेष,
विवाह पण्पत्ति ( भवगती ) सूत्र
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भावार्थ
14 आठना शतकका नववा उद्देशा 8420