________________
-
शब्दार्थ
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जु० जुग्य गु. गिाले थि० थिल्लि सी० शिविका सं० जम्मान लो मण्डक लो० लोह भाजन क० कुडच्छी आ. आसन स० शयन खं० स्थम्भ भं. भांडे म. पात्र उ० उपकरण आ० आदि दे० देश साहनन बंध स. उत्पन्न होवे ज० जघन्य अं० अंतर्मुहूर्त उ० उत्कृष्ट सं० संख्यात काल से वह कि कौनसा स० सर्व साहनन बंध से वह खी०क्षीर उ० उदक आ० आदि ॥ ९ ॥ से वह किं. कौनसा स. शरीर
णणा बंधे ? देस साहणणाबंधे जणं सगडरहजाणजुग्गगिल्लिथिलिसीयसंद
माणियलोहीलोहकडाहकडुच्छुयआसणसयणखभभंडमत्तोबगरणमाईणं, देससाहणणा है बंधे, एवं चेव समुप्पजइ, जहण्णेणं अंतोमुहुन्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं ॥
सेतं देस साहणणाबंधे ॥ से किं तं सव्वसाहणणाबंधे ? सव्वसाहणणाबंधे सेणं
खीरोदगमाईणं, सेत्तं सवसाहणणाबंधे ॥ ९ ॥ से तं अल्लियावणबंधे ॥ से किं तं गाडे, रथ, विमान, जुग्य, हाथी की अंबाडी, ऊंट की दिल्ली, शिविका, संदमनी, लोही, लोहे की. कुडछी, कडे, चैठने के आसन, सोने की शैय्या, स्तंभ, पर्वत और उपकरण आदि का जो बंध उसे देश साहनन बंध कहते हैं. उस की जघन्य अंतर्मुहून उत्कृष्ट संख्यात काल की स्थिति कही.
| बंध किसे कहतेअहो मोतम ! दय में पानी समान सब सत्र में मील जावे उसे सर्वत्र साहनन बंध कहते हैं ॥ ९ ॥ यह अल्लिकापन बंध हुवा. अब शरीर वंध किसे कहते हैं ? अहो गौतम !
wammmmmmmmmmmmmmmmmm
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ