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शब्दार्थ पा. प्राकार अ. अटारी च० कंगूरे दा० द्वार गो० दरवज्जा सो• तोरण पा० प्रासाद घ० घर स० शरण
ले० लयन आ० दुकान सिं० सिंघाडे ति० तीक च० चौक च. चच्चर च चतुर्मुख म० वडेरस्ते आ० आदिई छु. चुना नि० कर्दम मि० शिला स० समुच्चय बं० बंध म० उत्पन्न होवे ज० जघन्य अं० अंत मुहूर्त उ०१४
११६५ उत्कृष्ट सं० संख्यात काल ॥ ८ !! से• वह कि० कौनसा मा० साहननबंध दु०दोप्रकार का दे०देशसाहनन 10स. सर्व साहनन से वह कि० कौनसा दे. देश साहननबंध ज. जैसे स० शकट र० रथ जा० चाहन
देवकुलसभापव्वयथूभखाइयाणं, परिहाणं पागारट्टालगचरियदारगोपुरतोरणाणं, पासायघरसरणलेणआवणाणं, सिंघाडगतिगचउकाचच्चरचउम्मुहमहापहमाईणं, छुहाचिक्विलसिलासमुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ. जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेनं कालं सेत्तं समुच्चयबंधे ॥ ८ ॥ सेकिंतं साहणणाबंधे ? साहणणाबंधे
दुविहे पण्णत्ते, तंजहा देस साहणणाबंधेय, सव्वसाहणणाबंधेय ॥ से किं तं देससाहभावार्थ
कंगूरा, द्वार, नगर के द्वार, तोरण, गृह, शरण, लेण, इद श्रेणि, सिंघाडे के आकार के स्थान, त्रिक चौक, बहुत मार्गवाला स्थान, चतुर्मुख व राजमार्ग सो समुच्चय बंध कहा जाता है. इस की स्थिति जघन्य है। अंतर्महूर्त उत्कृष्ट संख्यात काल की है. ॥ ८॥ अब साहनन बंध किसे कहते हैं. ? अहो गौतम ! साहनन ०७ बंध के दो भेद-देश साहनन व सर्व साहनन. उन में से देश साहनन किसे कहते हैं ? अहो गौतम !
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र 40888
आठवा शतक का नववा उद्देशा
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