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शब्दाथ
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भावार्थ
43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
आलापन बंध ज. जैसे त० तृण का० भारा क० काष्ट का भारा प० पत्र का भारा ५० पलाल का भारा वे. लता का भारा ३० वेत्रलता का भारा व. वल्कल र० चर्यमय र० रज्जु व. वल्ली कु. कुश द०दर्भ आ० आदिमें आ० आलापन बंध स० उत्पन्न होवे ज. जघन्य अं० अंतर्महत उ० उत्कृष्ट सं
से किं तं आलवण बंधे? आलावण बंधे! जण्णं तणभाराणवा, कट्ठ भाराणवा, पत्तभाराणवा पलालभाराणवा वेल्लभाराणवा, वेत्तलया, वागवरत्त रज्जुवाल्ल कुस दब्भमाइएराहे आलावण बंधे समुप्पजइ, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज कालं सेत्तं आलारण बंधे ॥५॥ होता है. मध्यम अष्ट प्रदेश से अन्य को सादि विपरिवर्तमान से पहिले भांग में उदाहरण बतलाया. दूसरा अनादि सान्तपना का जो भांगा है यह यहां नहीं पाता है अनादि संबंध जीव के आठ प्रदेश के अविपरिवर्तमानपना से बंध का सपर्यवसित नहीं होता है. तीसरा आदि सहित व अंत रहित भांगा सिद्ध भगवंत आश्री पाता है क्योंकि शैलेषी अवस्था में जब सिद्ध घन प्रदेशों की स्थापना करते हैं वे प्रदेशों में अनंत काल में भी वैसे ही बने रहते हैं. और चौथा भांगा आदि अंत सहित कहते हैं. उस के चार भेद ? आलापन बंध २ अल्लिकापन बंध ३ शरीर बंध व ४ शरीर प्रयोग बंध. उन में से आलापन बंध का क्या अर्थ कहा है ? अहो गौतम! वल्कल, रस्मी, चर्म की नाडी, सन की रस्सी, कुश ब मूल आदि से तृण का भारा, काष्ट का भारा, पत्र का भारा, पालाल का भारा व वेल का भार का बंधन
* प्रगाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *