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________________ - 388 अनादि अ. अपर्यवसित से वह अ० आठ जी जीव मध्य प्रदेश का त. तहां ति० बीन अनादि अ० अपर्यवसित से० शेष सा० सादि त. तहां जे. जो सा. सादि अ० अपर्यवमित से० । २७ सि. सिद्ध को त. तहां जे. जो सा० सादि स. सपर्यवसित से वह च. चार प्रकार का आ० आला पन बंध अ० अल्लिकापन स. शरीर बंध स० शरीर प्रयोग बंध से वह कि कौनसा आ. साइएवा सपज्जवसिए ॥ तत्थणं जे से अगाइए अपजवासए सेणं अट्ठण्हं जीव मझं पएसाणं तत्थविणं तिण्हं २ अणाइए अपज्जवसिए सेसाणं साइए तत्थणं । जे से साइए अपजवसिए, सेणं सिद्धाणं; तत्थणं जे से साइए सपज्जवसिए सेणं से चउविहे ५० तं० आलावण बंधे, आल्लियावण बंधे, सरीर बंधे, सरोरप्पओगबंधे, ॥ होता है परंतु आठ रुचक प्रदेशों का विस्तार नहीं होता है. और भी अन्य जीव प्रदेशों का विपरिवर्त-17 मानपना से अनादि अपर्यवसित बंध नहीं होता है. इस के ऊपर दूसरे चार यों आठ प्रदेश का वंध कहा. अब एक आत्मप्रदेश की साथ जितने प्रदेश का परस्पर बंध होवे सो बतात हैं. उक्त आठ जीव प्रदेशों की मध्य में तीन २ का एक २ की साथ अनादि अपर्यवमित बंध है मो बतावे' से रहे हुवे आठ प्रदेशों में से उपरितन प्रतर का कोई विवक्षित प्रदेश को पार्ववर्ती दो व अधोवर्ती एक 1 ऐसे तीन का संबंध होता है. परंतु उपरितन एक प्रदेश का अधस्तन तीन प्रदेश की साथ संबंध नहीं । 488- पंचममाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र आठवा शतकका नववा उद्देशा 4808 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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