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शब्दार्थ क वह किं. कौनसा प० परिणाम प्रत्यय अ० संध्याकाल अ० बद्दल रु० वृक्ष ज० जैसे त० तीसरा शतक में
जा० यावत अ० अमोथ प० परिणाम प. प्रत्यय बं बंध स० उत्पन्न होता है ज० जघन्य ए. एक समय छ• छमास ॥४॥से वह किं० कौनसा प० प्रयोग बंध ति० तीन प्रकार का तं. वह ज. जैसे अ. अनादि अ. अपर्यवासित सा० सादि अ. अपर्यवसित सा. सादि म० सपर्यवसित त० तहां जे. जो
पारणाम पच्चइए जण्णं अब्भाणं, अब्भरुक्खाणं, जहा तइयमए जाव अमोहाणं परिणाम पञ्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं छम्मासा सेत्तं परिणाम पच्चइए ॥ सेत्तं साइए वीससा बंधे ॥ ४ ॥ से किं तं पओगबंधे ? पओग
बंधे तिविहे पण्णत्ते तंजहा अणाइएवा अपज्जवसिए, साइएवा अपज्जवसिए भावार्थ णाम वगैरह जैसे तीसरे शतक में कहा तैसे ही यहां जानना. यह परिणाम प्रत्ययिक बंध कहा जाता है।
इम की स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट छमास की होती है. यह तीसरा परिणाम प्रत्यायिक बंध हुवा. यह सादि विलसा बंध की व्याख्या पूर्ण हुई ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! प्रयोग बंध किसे कहते हैं ? अहो गौतम ! प्रयोग बंध के तीन भेद कहे हैं १ अनादि अपर्यवासित, सादि, अपर्यवसित, व सादि सपर्यवसित. जीव के असंख्यात प्रदेश की मध्य में जो आठ रुचक प्रदेश हैं उस में अनादि अनंत का भांगा मीलता है क्योंकि जब केवलज्ञानी समुद्धात करते हैं तब असंख्यात प्रदेशों का विस्तार
बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 0
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *