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सूत्र 8 48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती)
ए. एक समय उ० उत्कृष्ट अ० असंख्यात काल से वह किं कौनसा भा० भाजन १० प्रत्यय भा० भाजन प्रत्यय ज• जो जु० जीर्ण सु० मुरा जु० जीर्ण गु० गुड जु० जीर्ण तं० तांदुल भा० भाजन २०प० प्रत्यय बं० वंध स० उत्पन्न होता है ज० जघन्य अं० अंत मुहूर्त उ० उत्कृष्ट सं० संख्यात काल से है
खेजं कालं सेत्तं बंधणपच्चइए ॥ सेकिंतं भायण पच्चइए ? भायण पच्चइए जण्णं जुण्णसुरा, जुण्णगुला, जुण्ण तंदुलाणं, भायण पच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ जहण्णेणं
अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखजं कालं सेत्तं भायण पच्चइए ॥ से किं तं परिणाम पच्चइए ? ख्यात व अनंत प्रदेशात्मक स्कंध का विमात्र स्निग्धता, विमात्र रूक्षता, व विमात्र स्निग्ध रूक्षता रूप बंधन में प्रत्ययिक जो बंध होता है वह जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है, और उसे बंधन प्रत्ययिक कहते हैं. अब भाजन प्रत्ययिक बंध कहते हैं. जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड, व जीर्ण तांदूल का भाजन प्रत्यायिक का बंध होता है. वह जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट संख्यात काल तक रहता है. अब परिणाम प्रत्ययिक बंध कहते हैं. पुद्गल का रूपांतर होना जैसे संध्याकाल का रंग, बद्दल का परिणाम वृक्ष का परि-17
१. विषम मात्रा स्निग्ध को रूक्ष की विषम मात्रा, रूक्ष को स्निग्ध की विषम मात्रा, सम मात्रा से बंध नहीं होता है है परंतु विषम मात्रा से बंध होता है.
आठवा शतकका नववा उद्देशा84880