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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
विस्रसाबंध भ० भगवन् क. कितने प्रकार का प० प्ररूपा गो० गौतम ति० तीन प्रकार का बं० बंधण प्रत्यय भा० भाजन प्रत्यय प० परिणाम प्रत्यय से. वह कि कैसा बं. बंधन प्रत्यय बं० बंधन प्रत्यय जजो प० परमाणु पुद्गल द० द्विप्रदेशी तिः विप्रदेशी जा० यावत् द० दशमदेशी सं० संख्यात प्रदे अ० असंख्यात प्रदेशी अ० अनंत प्रदेशी खं० स्कन्ध वे० विमात्रा नि० स्निग्धपने वे० विमात्रा लु. रूक्षपने वे० विमात्रा निस्निग्धरूक्षपने एक ऐसे बं बंधन प्रत्यय बं० बंध स० उत्पन्न होता है ।
वीससा बंधेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे प० तंजहा बंधणपच्चइए, भायणपच्चइए, परिणामपच्चइए, ॥ से किं तं बंधणपच्चइए ? बंधणपञ्चइए जण्णं परमाणुपोग्गला दुपएसिया, तिपएसिया, जाव दसपएसिया, संखेजपएसिया, असंखेजपएसिया अणंतपएसियाणं खंधाणं वेमाय निद्वयाए, वेमाय लुक्खयाए, वेमाय निद्धलु
क्खयाए, एवं बंधण पच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं असंअहो भगवन् ! मादि विरसा बंध के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! सादि विलसा बंध के तीन भेद कहे हैं. १ बंधन प्रत्ययिक सो अन्य से बंधन किया जावे २ भाजन प्रत्ययिक सो पात्र से बंधन होवे और ३ परिणाम प्रत्ययिक सो रूपान्तर होने से बंध होवे. अब अहो भगवन् ! बंधन प्रत्यायिक का क्या अर्थ है? अहो गौतम! परमाण पगल, द्विपदेशात्मक, तीन प्रदेशात्मक यावत् दश, संख्यात, असं
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ