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शब्दार्थ * सर्व बंधे गो० गौतम दे० देशबंधे नो० नहीं स० सर्व बंधे ए० ऐसे अ० अधर्मास्तिकाय अ. अन्योन्य
10 अ० अनादि वी० विस्रमाबंध ए०ऐसे आ आकाशास्तिकाय अ०अन्योन्य अ०अनादि वी विस्रसाबंध ध० Yधर्मास्तिकाय अ० अन्योन्य अ• अनादि वी० विस्रसाबंध भं• भगवन् का० काल से के• कितना काल होवे गो गौतम स०सर्व काल ए०ऐसे अ० अधर्मास्तिकाय ए ऐसे आ० आकाशास्तिकाय ॥३॥ सा० सादि
अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधेवि, आगासत्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधेवि ॥ धम्मत्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधेणं भंते ! कालओ केवचिरंहोइ ? गोयमा ! सव्वद्धं, एवं अधम्मत्थिकायं, एवं आगासत्थिकायं ॥ ६ ॥ साइय
विवाह पण्णत्ति (भगवत) सूत्र 4
आठवा शतक का नववा उद्दशा
भावार्थप्रदेशों का जो परस्पर बंध है सो आकाशास्तिकाय विस्रसा बंध. अहो भगवन् : धर्मास्तिकाया के
प्रदेशों का जो अनादि बंध है वह क्या देश बंध है या सर्व बंध है ? अहो गौतम ! देश बंध है परंतु सर्व बंध नहीं है क्योंकि एक २ प्रदेश को स्पर्श कर रहे हैं. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय के प्रदेशों का बंध का जानना. अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाय का परस्पर विरसा बंध की कितनी स्थिति कही ? अहो गौतम ! सदैव रहते हैं ऐसे ही अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय का जानना ॥ ३
१ कड़ी से कडी लगकर बंध होवे वैसा बंध सो देश बंध.२ खीरनीर समान बंध सो सर्व बंध,
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