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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
का सा० सादि विस्रता अ०. अनादि विस्रसा ॥ २॥ अ० अनादि विस्रसा भ० भगवन् क० कितने
र का गो० गौतम ति० तीन प्रकार का ध० धर्मास्तिकाय अ० अन्योन्य अ. अनादि विस्रसाबंध अ० अधर्मास्तिकाय अ०अन्योन्य अ० अनादि वी विस्त्रसाबंध आ०आकाशास्तिकाय अ० अन्योन्य अ. अनादि वीविस्रसाधधधर्मास्तिकाय अ०अन्योन्य अ० अनादि वी विस्रता बंबंध भगवन् किं०क्या दे०देशबंधे . साइय वीससा बंधेय, अणाइय वीससा बंधेय ॥ २ ॥ अणाइय वीससा बंधेणं भंते ! कइविहे ५० ? गोयमा ! तिविहे ५० तंजहा धम्मत्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधे, अधम्मत्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधे, आगासात्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधे । धम्मत्थिकाय अण्णमण्ण अणाइय वीससा बंधेणं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंथे एवं अधम्मत्थिकाय " आदि सहित विस्रसा बंध और २ अनादि सहित विस्रसा बंध ॥२॥ अहो भगवन् ! अनादि विससा बंध के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! अनादि विस्रमा के तीन भेद कह हैं. १ धर्मास्तिकाया के प्रदेशों का जो परस्पर बंध है. सो धर्मास्तिकाय अनादि विस्रमा बंध २ अधर्मास्तिकाया के प्रदेशों को जो परस्पर बंध हैं सो अधर्मास्तिकाय अनादि विस्रमा बंध, और ३ और आकाशास्तिकाया के
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी बालापतादजी *
भावार्थ