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शब्दार्थ
में गो० गौतम ज० जघन्य ए० एक स० समय उ० उत्कृष्ट छ० छमास पे० वह ए ऐसे भ० भगवन् ॥८॥८॥ है क० कितने प्रकार के भ० भगवन् बं० बंध प० प्ररूपे गो० गौतम दु० दोपकार के बं० बंध ५० प्ररूपे प०प्रयोग बंध वी०विस्रसाबंध॥१॥ वी०वित्रसाबंध भ० भगवन् क कितने प्रकारका गोगौतम दु०दो प्रकार
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सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ अट्टमसए अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ८ ॥ ८॥ * कइविहेणं भंते ! बंधे १० ? गोयमा ! दुविहे बंधे ५० त० पओगबंधेय, वीससा बंधेय ॥ १ ॥ वीससा बंधेणं भंते ! कइविहे ५० ? गोयमा ! दुविहे ५० तंजहा
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र -
आठवा शतकका नववा उद्देशा
भावार्थ
त्ति स्थान में जघन्य एक समय उत्कृष्ट छमास तक का विरह पडता है, वगैरह ज्योतिषी का विस्तार पूर्वक कथन जीवभिगम मूत्र से जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह आठवा शतक का आठवा . उद्देशा पूर्ण हुवा ॥८॥८॥ ३ आठवे उद्देशे के अंत में ज्योतिषी की वक्तव्यता कही. यह पदलपर्याय है इसलिये इस उद्देशे में पुद्गल का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन् ! बंध के कितने भेद कहे ? अहो गौतम ! बंध के दो भेद कहे. १ जीव के प्रयोग से जो बंध होवे सो प्रयोग बंध और २ स्वभाव से होवे सो विस्रसा बंध ॥१॥ अहो भगवन् ! विलसा बंध कितने प्रकार का कहा ? अहो गौतम ! विस्रसा बंध दो प्रकार का कहा.।