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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी gi
मूरिया किं तीयं खेत्तं ओभासंति, पडुप्पण्णं खेत्तं अणागयं खेत्तं ओभासंति ? गोयमा ! नो तीयं खेतं, पडुप्पण्णं खेत्तं ओभासंति, नो अणागयं खेत्तं ओभासंति ॥ तं भंते ! किं पुटुं ओभासंति, किं अपुटुं ओभासंति ? गोयमा ! पुटुं ओभासंति नो अपुटुं ओभासंति जाव नियमा छदिसि ॥ जंबूद्दीवेणं भंते ! सूरिया किं तीयं खेत्तं उज्जोवेति एवं चेव जाव नियमा छद्दिसिं ॥ एवं तति, एवं भासेति जाव नियमा छदिसि ॥ जंबूद्दीवेणं भंते ! सूरिया किं तीये खेत्ते किरिया कजइ, पडुप्पण्णे खेत्ते . किरिया कज्जइ, अणागए खेत्ते किरिया कजइ ? गोयमा ! नो तीये खेत्ते किरिया
कजइ, पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कजइ, नो अणागए खत्ते किरिया कजइ, । हैं व अनागत क्षेत्र में प्रकाशते हैं ? अहो गौतम ! अतीत व अनागत क्षेत्र को नहीं प्रकाशने हैं मात्र वर्तमान क्षेत्र को प्रकाशते हैं. अहो भगवन् ! उसे क्या स्पर्शते हुए प्रकाशते हैं या विना स्पर्शते हुए प्रकाशते हैं ? अहो गौतम ! स्पर्शते हुए प्रकाशते हैं परंतु विना स्पर्शते हुए नहीं प्रकाशते हैं यावत् छदिशि को प्रकाशते हैं ऐसे ही सूर्य जम्बूद्वीप में उद्योत करते हैं. तपते हैं, यावत् भास करते हैं..अहो भगवन् ! जम्बूद्वीप में क्या सूर्य अतीत क्षेत्रमें अवभासनादि क्रिया करते हैं वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं या अनागत क्षेत्रमें करते हैं।
" *यकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ