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________________ भावार्थ 48 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी एगविह बंधगस्सणं भंते ! सजोगिभवत्थ केबलिस्स कइपरीसहा प० ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता? नवपुण वेएइ सेसं जहा छव्विह बंधगस्स ॥ अबंधगस्तणं भंते ! अजोगिभवत्थ केवलिस्स कइपरीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता नवपुण वेएइ ॥ जंसययं सीय परीसहं वेएइ नो तं समयं उसि परीसहं वेएइ, जंसमयं उसिण परीसहं वेएइ नो तं समयं सीय परीसहं वेएइ, जं समयं चरिया परीसहं नो तं समयं सेज्जापरीसहं, जं समयं सेज्जापरीसहं नो छ प्रकार के कर्मों का बंध करनेवाले सराग छद्मस्थ को अहो भगवन् ! कितने परिषह कहे हैं ? अहो गौतम ! चौदह परिषद कड़े हैं जिन में से बारह वेदते हैं. क्यों कि शीत के समय में ऊष्ण व ऊष्ण { समय में शीत नहीं वेदते हैं और चर्या के समय शैय्या व शैय्या के समय चर्या नहीं वेदते हैं. एक प्रकार के ( कर्मबंध करनेवाले वीतराग छद्मस्थ को कितने परिषह कहे हैं ? अहो गौतम ! चौदह परिषह होते हैं. { परंतु १२ वेदते हैं. तेरवे गुणस्थानवर्ती सजोगी भवस्थ को होते हैं उन में से नव वेदते हैं. अहो भगवन् ! अयोगी भवस्थ केवली को कितने परिषह कहे हैं ? अहो गौतम ! अग्यारह अग्यारह परिषद परिषद कहे हैं जिन में से नव वेदते हैं. शीत के समय ऊष्ण नहीं वेदते हैं और ऊष्ण के समय शीत * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * १९४८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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