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________________ 380 ११४७ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र सीय परीसहे जाव अलाभ परीसहे ॥ एवं अट्ठविह बंधगस्सवि ॥ छन्विह बंधगस्सणं भंते ! सराग छउमत्थस्स कइ परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चोदस परीसहा पण्णत्ता बारस पुणवेएइ, जं समयं सीय. परीसहं वेएइ नो तं समयं उसिण परीसहं वेएइ, जं समयं उसिण परीसहं वेएइ नो तं समयं सीय परीसहं वेएइ जं समयं चरिया परीसहं वेएइ नो तं समयं सेजा परीसहं वेएइ, जं समयं सेज्जा परीसहं चेव वेएइ नो तं समयं चरिया परीसहं वेएइ, ॥ एक्कविह बंधगस्सणं भंते ! वीय राग छउमत्थस्स कइपरीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं जहेव छान्वह बंधगस्स । समय में निषिद्या वेदता है उस समय में चर्या नहीं वेदता है * अहो भगवन् ! आठों कर्मों का बंध करनेवाले को बावीस परिषह होते हैं जिन में से मात्र बीस परिषद वेदते हैं. आयुष्य व मोहनीय छोडकर है * निषिद्या परिषह की समान शैय्या परिषह भी चर्या परिषह से विरुद्ध है तो उसे भी यहां ग्रहण कर १९ परिषह है वेदने का कहना चाहिये, परंतु प्रामादि में जो गमन कर रहा है वह उत्सुकता के परिणाम से विश्राम भोजन शैय्या में ई प्रवर्तता है इस से शैय्या परिषह का निषेध नहीं ग्रहण किया है. अब आगे छ कर्म का बंध करनेवालेको निषद्या परिषह ॐ का उदय नहीं है इस से वहां शय्या परिषह का निषेध ग्रहण किया है. 42 आठवा शतक का आठवा उद्देशा 888 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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