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अक्कोसे ॥ सक्कारपुरकारे, चरित्तमोहमि सत्तेते (१) अंतराइएणं भंते । कम्मे कइपरीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे अलाभ परीसहे समोयरइ ॥ १३ ॥ सत्तविह बंधगस्सणं भंते ! कइ परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता, वीसं पुण वेएइ. जं सययं सीय परीसहं वेएइ नो तं समयं उसिण परीसहं वेएइ, जं समयं उसिण परीसहं वेएइ नो तं समयं सीय परीसहं वेएइ, जं समयं चरिया परिसहं वेएइ, नो तं समयं निसीहिया परीसहं वेएइ, जं समयं निसीहिया परीसहं वेएइ नो तं समयं चरिया परीसहं वेएइ, ॥ अट्टविह बंधगस्सणं भंते ! कइ परीसहा
पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता, तंजहा-छुहा परीसहे, पिवासा परीसहे भावार्थ ४ निषिद्या ५ याचना ६ आक्रोश व ७ सत्कार पुरस्कार. अहो भगवन् ! अंतराय के कितने परिषह ?
अहो गौतम ! अंतराय कर्म का मात्र एक अलाभ परिषह है ॥ १३ ॥ सात प्रकार के बंध करनेवाले को
कितने परिषह कहे हैं ? अहो गौतम ! बाइस परिषह कहे हैं. उन में से बीस परिषह वेदाते हैं. जिस के समय में शीत वेदता है उस समय में ऊष्ण नहीं वेदता है और जिस समय में ऊष्ण वेदता है उस
समय में शीत नहीं वेदता है. जिस समय में चर्या वेदता है उस समय में निपिद्या नहीं वेदता है और जिस
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*