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१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
दं० दर्शन परिषह ॥१२॥ ए. ये भं० भगवन् वा वाइस परिषह का कितना क० कर्म प्रकृति में स. समवर्तने हैं गो. गौतम च० चार क० कर्म प्रकृति में स० समवर्तते हैं णा. ज्ञानावरणीय वे०वेदनीय मो० मोहनी अं० अंतराय णा ज्ञानावरणीय में भ० भगवन् क० कितने १० परिषह स. समवर्तते हैं गो. मौतम दो० दो परिपह स० समवर्तते हैं प० प्रज्ञा परिषह अ० अज्ञान परिषह वेवेदनीय में ए• अग्या__ जाव दंसण परोसहे ॥ १२ ॥ एएणं भंते ! बावीसं परीसहा कइ कम्मपगडीसु
समायरंति ? गोयमा ! चउमु कम्म पगडीसु समोयरंति, तंजहा-णाणावरणिजे, वेयणिज्जे, मोहणिजे अंतराइए ॥ णाणावरीणजेणं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति तंजहा-पण्णा परीसहे अण्णाण परीसहे ॥
वेयणिजेणं भंते ! कइ परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एक्कारस परीप्तहा समोयरंत्ति अहो भगवन् ! परिषह कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! परिषह बाइस कहे हैं. उन के नाम. १ क्षुधा परिषह २ पिपासा परिषह ३ शीत ४ ऊष्ण ५ दंश मशक , अचेल ७ अरति ८ स्त्री ९चर्या १० निविद्या, ११ शैय्या १२ आक्रोश १३ वध १४ याचना १५ अलाभ १६ रोग १७ तृणस्पर्श १८ जलमेल ११९ सत्कार पुरस्कार २० प्रज्ञा २१ अज्ञान और २२ दर्शन परिषह ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! उक्त बाइम
रिपट कितनी कर्म प्रकृतियों से उदय में आते हैं ? अहो गौतम ! ज्ञानानरणीय, वेदनीय, मोहनीय व
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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