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१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 40%
बंधी बंधइ न बांधस्सइ, बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ? ... गोयमा ! अत्यंगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ,' अत्थेगइए बंधी नबंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी नबंधइ नबंधिस्सइ, ॥ तं ते! किं साइयं सपजवसियं बंधइ, पुच्छा ?तहेव गोयमा ! साइयंवा सपज्जवसियं बंधइ,
अणाइयंवा सपज्जवसिवं बंधइ अणाइयंवा अपज्जवसियं बंधइ, णो चेवणं साइयं काल में किया वर्तमान में करे नहीं व अनागत में नहीं करेंगे ? अहो गौतम ! जिन संसारी जीवोंने ब यथाख्यात नहीं प्राप्त किया उनोंने गत काल में बंध किया, वर्तमान में बंधते हैं व अनागत में बंधेगे. २ जिन का आगामिक काल में मोह क्षय होगा उनोंने गत काल में बंध किया, वर्तमान में करते हैं व आगामिक में नहीं करेंगे ३ कितनेक उपशम श्रेणीवालेने गत काल में बंध किया, वर्तमान में नहीं करते हैं। व आगामिक में पढवाइ बनकर बंध करेंगे। कितनेक केवल ज्ञानीने गत काल में बंध किया, वर्तमान में नहीं करते हैं और अनागत में नहीं करेंगे * अहो भगवन् ! क्या सांपरायिक बंध सादि अंत है, सादि अनंत है, अनादि सांत हैं, या अनादि अनंत है ? अहो गौतम ! उपशांत मोह से पडकर सांपरायिक
* सांपरायिक बंध में मात्र चार भांगे ही पाते हैं क्यों कि यह बंध अनादि है, पहिले सब जीवों को हुबा है इस से गत काल में नहीं बंधने के चार भांगे कम हो गये...
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *