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________________ विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 480 भावार्थ बंधइ पुरिसोवि बंधइ, जाव णपुंसगावि बंधंति अहवे एय अवगय वेदो बंधइ, अहवे एय अवगयवेपाय बंधंति ॥ जइ भंते ! अवगय वेदोय, अवगय वेदाय बंधति, तं भंते ! किं इत्थी पच्छा कडो बंधइ, पुरिस पच्छाकडो बंधइ, एवं जहेव इरियावहिया बंधगस्स तहेव गिरवसेस जाब अहवा इत्थी पच्छाकडाय, पुरिस पच्छाकडाय, णपुंसग पच्छा कडाय बंधति ॥ तं भंते ! किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ, क्रिया का बंध करते हैं. अहो भगवन् ! सांपरायिक क्रिया का बंध एक स्त्री, एक पुरुष, एक नपुंसक से अथवा बहुत स्त्री, बहुत पुरुष व बहुत नपुंसक को होता है ? अथवा अवेदी को होता है ? अहो गौतम ! सातों ही सांपरायिक क्रिया का बंध करते हैं, क्योंकि वेदोदय नववे गुणस्थान पर्यंत होता है और कषाय दशवे गुणस्थान तक होती है। इस से सब को सांपरायिक का बंध होता है. अहो भगवन् ! यदि अवेदी को मांपरायिक क्रिया का बंध होता है तब क्या स्त्री पश्चात् कृत, पुरुष पश्चात् कृत व नपुंसक पश्चात् कृत यो २६ भांगे यावत् बहुत स्त्री पश्चात् कृत, बहुत पुरुष पश्चात् कृत बहुत नपुंसक पश्चात् कृत तक जानना. अबु सांपरायिक क्रिया का बंध तीन काल आश्री कहते हैं. अहो भगवन् ! सांपरा-1 यिक बंध १ गत काल में किया, वर्तमान में करे, व अनागत में करेंगे २ गत काल में किया, वर्तमान में करते हैं व अनागत में नहीं करेंगे, ३ गत काल में किया, वर्तमान में नहीं करे व अनागत में करेंगे ४ गत है। wwwmarwanam 48488 आठवा शतक का आठवा उद्देशा 824th .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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