SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र 8. सपज्जवसियं बंधइ, अणाइयं अपज्जवसियं बंधइ ? गोषमा ! साइयं सपजवासियं बंधइ, णो साइयं अपज्जवसियं बंधइ, णो अणाइयं सपज्जवसियं बंधइ, णो अणाइयं अपजवसियं बंधइ ॥ तं भंते । किं देसेणं देसं बंधइ, देसेणं सव्वं बंधइ, सव्वेणं |११३९ भावार्थ अनागन में उपशम श्रेणी पर चडकर बंध करेगा. ४ किसी केवलज्ञानीने अतीत में बंध किया, वर्तमान में शैलेशीपने को प्राप्त होने से नहीं बंधता है और अनागत में नहीं बंधेगा ५किसीने पहिले श्रेणी पर नहीं चढने से बंध नहीं किया, वर्तमान में बंध करता है और अनागत में बंध करेगा ६ छठा भांगा शून्य है क्यों कि वर्तमान में बंध करनेवाला अनागत में बंध करता ही है, चरम शरीरी भव्य जीवने गत कालमें है। बंध नहीं किया वर्तमान में बंध नहीं करता है परंतु अनागत में सयोगी अवस्था में बंध करेगा ८ आठवा है भांगा अभव्य आश्री जानना. इन आठमें से? प्रथम भांगे में उपशान्त मोह,२दूसरे में क्षीण मोह, ३तीसरे में उपशान्त मोह४चौथे में शैलेशीगत५पांचवे में उपशांत मोह ६ छठे में क्षीण मोह७ सातवे में भव्य जीव और ८ आठवे में अभव्य जीव ग्रहणाकर्ष आश्री में भी इतना ही कहना परंतु अर्थ में विशेषता प्रथम भांगे में है। पूउपशान्त मोह व क्षीण मोह, दूसरे में केवली, तीसरे में उपशान्त मोह, चौथे में शैलेशीगत, पांचवे में उप-33 ॐ शांत मोह, अथवा क्षीण मोह, छठा शून्य, सातवे में भव्य, भावी मोह, उपशम अथवा क्षीण मोह और * आठने में अभव्य. अहो भगवन् ! यह ईर्यापथिक कर्मबंध? आदि अंत साहित, २ आदि सहित अंत रहित 428 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 888 आठवा शतकका आठया उद्देशा 9 88
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy