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भावार्थ
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
बंधइ, पुरिसो बंधइ, णपंसगो बंधइ, इत्थीओ बंधति, पुरिसा बंधीत,णपुंसगा बंधति, णोइथिणोपुरिसोणोणपुंसगो बंधइ ? गोयमा ! णो इत्थी बंधइ, णो पुरिसो बंधइ जाव णो णपुंसगा बंधति ॥ पुवपडिवण्णए पडुच्च अवगयवेदा बंधति, पडिवजमाणए पडुच्च अवगयवेदो वा बंधइ, अवगयवेदा था बंधति,॥ जइ भंते! अवगयवेदो वा बंधइ, अवगयवेदा वा बंधंति, तं भंते ! किं इत्थिपच्छाकडो बंधइ, पुरिसपच्छाकडो बंधइ,
णपुसगपच्छाकडोबंधइ, इत्थिपच्छाकडाबंधति, पुरिसपच्छाकडा बंधंति, णपुसगपच्छाकेवली एक स्त्री व एक पुरुष है. इस के विरह का संभव होने से असंयोगी चार व द्विसंयोगी चार ऐसे आठ विकल्प होते हैं. १ एक मनुष्य बांधे २ एक मनुष्यणी बांधे ३ बहुत मनुष्य बांधे, और ४ बहुत मनुष्यणी बांधे. द्वीसंयोगी चार भांगे ? एक मनुष्य एक मनुष्यणी २ एक मनुष्य बहुत मनुष्यणी ३ बहुत मनुष्य व एक मनुष्यणी और ४ बहुत मनुष्य बहुत मनुष्यणी. अब वेद की अपेक्षा से करते हैं अहो भगवन् ! ईर्यापथिक क्रिया का बंध क्या एक स्त्री करे, एक पुरुष करे, एक नपुंसक करे. बहुत स्त्री, करे, बहुत पुरुष करे, बहुत नपुंसक करे अथवा नो स्त्री नो पुरुष नो नपुंसक बंध करे ? अ गौतम ! ईर्यापथिक क्रिया का बंध स्त्री करे नहीं यावत् बहुत नपुंसक करे नहीं. पूर्व प्रतिपन्न आश्री विगत वेद वाले बांधते हैं. और वर्तमान काल आश्री विगतवेदवाला बांधता है अथवा विगतवेद वाले बांधते
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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