SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ) 선의 भावार्थ | पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र इ० इन पं० पांच प्रकार से व० व्यवहार ज० जसे ज० जहां त० तैसे त० तहां अ० अनिश्रित उ० उपाइच्चेयं पंचविहं बवहारं जहा २ जहिं २ तहा २ तहिं २ अणिस्सिओसियं सम्मं कहकर भेजे. और वह भी होने नहीं तो आनेवालेको ही अतिचारकी विशुद्धि कहकर भेज देवे. यह आज्ञा व्यवहार [ कहा जाता है ४ अब धारणा व्यवहार कहते हैं. कोई गीतार्थ आचार्य किसी शिष्य को किसी अपराध (के लिये द्रव्यादि देखकर विशुद्धि करे, वह शिष्य गुरुने दी हुई शिक्षा मन में रखकर किसी अन्य की वैसा ही { अपराध के लिये विशुद्धि करें. इस तरह विशुद्धि करना सो धारणा व्यवहार है. अथवा किसी वैयावृत्य करनेवाला शिष्य सब छेद श्रुत देने योग्य नहीं है ऐसे शिष्य को आचार्य कृपा से कितनेक प्रायश्चित्त के पद कहे उसे धारकर वह अन्य को आलोचना देवे तो उसे भी धारणा व्यवहार कहते हैं. ५ अब जीत व्यवहार कहते हैं पहिले साधु जिस अपराध की विशुद्धि के लिये बहुत तप करते थे वैसा ही अपराध की विशुद्धि के लिये सांप्रत काल में द्रव्य, क्षेत्र, कालव भाव विचार कर योग्य तपका प्रायश्चित्त देवे उस समय को जीत गीतार्थ व्यवहार कहते हैं, आचार्यने गच्छ में सूत्र से न्यून, अधिक प्रवतया और अन्य अनेक गीतार्थने उसे मान्य किया तो उसे रूढ जीत व्यवहार कहते हैं. इन पांच में से किसी एक व्यवहारवालेको गीतार्थ कहते हैं और उन की पास प्रायश्चित्तं लेना परंतु अगीतार्थ की पास प्रायश्चित्त लेना नहीं. अब आगमादि व्यवहार में उत्सर्ग अपराध संघयन, धृति व बल देखकर अथवा जिस प्रायश्चित्त को आठवा शतकका आठवा उद्देशा ११३१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy