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शब्दार्थ प्रकार का प० प्ररूपा आ० आगम मु० श्रुत आ० आज्ञा धा० धारणा जी० जीत ज० जैसे से वह त.
तहां आ० आगम सि होवे आ० आगम से व० व्यवहार प० रखे णो० नहीं से वह त० तहां आ० आगम सि० होवे ज जैसे त. तहां सु० श्रुत सेव० व्यवहार प० रखे पो० नहीं से वह त. तहां
११२८ ० श्रुत सि. होवे ज जैसे त. तहां आ० आज्ञा सि० होवे आ० आज्ञा से क. व्यवहार प० । मो० नहीं त . तहां आ० आज्ञा सि. होवे ज० जैसे त० तहां धा० धारणा मि० होवे धा० धारणा से ___ गोयमा! पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तंजहा-आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए ॥ जहा
से तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारं पट्टवेजा ॥ णोय से तत्थ आगमे सिया __ जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेजा ॥णोय से तत्थ सुए सिया, जहा से
तत्य आणा सिया आणाए ववहारं पट्टवेज्जा णोय से तत्थ आणासिया जहा से तत्थ प्रत्यनीक ॥ ६॥ जो प्रत्यनीकपना का त्याग करते हैं वे शुद्ध व्यवहार पाल सकते हैं. अहो भगवन् ! व्यवहार के कितने भेद कहे हैं ? अहा गौतम ! व्यवहार के पांच भेद कहे हैं. १ जिस से पदार्थ जाना
जावे सो आगम व्यवहार २ सना जावे सो श्रृत ३ आदेश कर देवे सो आज्ञा ४ धारण कर रखे सो धारलणा और आचार (परंपराकी रीति ) सो जीत व्यवहार. इन में से केवलज्ञानी, मनःपर्यव ज्ञानी, चउदहन
पूर्वधर व दशपूर्वधर इन का व्यवहार सो आगम व्यवहार, इस में प्रथम आलोचनादि केवल
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहाय जी चालाप्रसादजी *
भावार्थ