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________________ शब्दार्थ | स० वह ए० ऐसे भ० भगवन् ॥ ८॥७॥ रा० राजगृह न: नगर में जा. यावत् ए. ऐमा व• वोले गु० गुरु भं० भगवन् प० प्रत्यय क०० कितने प. प्रत्यनीक प० प्ररूपे गो. गौतम त तीन प० प्ररूपे तं. वह ज. जैसे आ० आचार्य प्रत्यनीक उ• उपाध्याय प्रत्यनीक थे० स्थविर प्रत्यनीक ॥ १ ॥ ग० गति भं० भगवन् प० प्रत्यय क०कितने सेत्तं विहायगई । सेवं भंते भंते त्ति ॥अट्ठमसयस्स सत्तमोउद्देसो सम्मत्तो॥ ८॥ ७॥ - रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी गुरूणं भंते ! पडुच्च कइपडिणीया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तंजहा आयरिय पडिणीए, उवज्झाय पडिणीए, थेरपडिणीए, ॥ १ ॥ गईणं भंते ! पडुच्च कइपडिणीया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ पूर्ण हुवा ॥ ८॥७॥ है सातवे उद्देश में स्थविरों के प्रत्यनीक अभ्यदर्शनियों का कथन कहा. अब गुड प्रमुख के प्रत्यनीक कहते हैं. राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नम-3 स्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! उपदेश देनेवाले ऐसे गुरु के कितने प्रत्यनीक (प्रतिकूल निंदक) कहें ? अहो गातम ! तीन प्रत्यनीक कहें. १ अर्थ व्याख्यान के करनेवाले आचार्य का प्रत्यनीक २ सूत्र देनेवाले उपाध्याय का प्रत्यीक और ३ श्रुत, पर्याय व षय से स्थविर का प्रत पंचमांग विवाह पण्णति ( 80 आठवां शतकका आठवा उद्देशा 808 VN
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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